बुधवार, 25 सितंबर 2019

स्कूली बच्चों को पौष्टिक आहार देने के लिए बनाई गई महत्वाकाक्षी योजना मिड-डे मील में ही उन्हे शुद्ध खाना भी नहीं मिल रहा।

स्कूली बच्चों को पौष्टिक आहार देने के लिए बनाई गई महत्वाकाक्षी योजना मिड-डे मील में ही उन्हे शुद्ध खाना भी नहीं मिल रहा।


स्व सहायता समूह अपनी मनमर्जी से बनाते हैं मध्यान्ह भोजन



 बुरहानपुर-  स्कूली बच्चों को पौष्टिक आहार देने के लिए बनाई गई महत्वाकाक्षी योजना मिड-डे मील में ही उन्हे शुद्ध खाना भी नहीं मिल रहा। ऐसे में स्पष्ट है कि यहा आने वाले छात्रों का स्वास्थ्य खतरे में है। 
स्कूल आने वाले बच्चों को नियमित रूप से मिड-डे मील आहार दिया जाता है, लेकिन इसकी गुणवत्ता पर उठने वाले सवालों में कोई कमी नहीं आई है। भोजन में पाई जाने वाली कमियों को दूर करने का प्रयास तो दूर इसके निर्देशों का पालन करने में भी लापरवाही बरती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में मिड-डे मील के आहार-चार्ट के अनुसार भोजन देना तो दूर उसके बारे में बच्चों को जानकारी भी दे रहे है। संस्थाएं और स्व सहायता समूह भी लापरवाह है। इन समूहों के मिड-डे मील संचालक के साथ-साथ स्कूल के प्रभारी शिक्षक को भोजन की देखरेख और उसके स्वाद की परख की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। लेकिन यह प्रक्रिया प्रत्येक क्षेत्र में कारगर नहीं हो सकी है। 


पौष्टिक आहार मुहैया कराने में नहीं मिल रही सफलता
स्कूल के बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से भले ही मिड-डे मील की शुरुआत की गई हो, लेकिन मौजूदा समय में इसकी हालत चिंतनीय है। भोजन के चार्ट का कई स्कूलों से गायब होना ही इसकी हकीकत बयां करता है। कई ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों से आहार चार्ट गायब हैं। आहार में गड़बडयि़ों की घटना से यह स्पष्ट है कि इस बारे में नियमों के पालन और सुचारू व्यवस्था का स्कूलों में अभाव है।


पोषक तत्वों की कमी
मिड-डे मील आहार के माध्यम से हर हफ्ते बच्चों को अलग-अलग पोषण वाले आहार देने के नियमों के पालन में लापरवाही बरती जा रही है। इसके कारण बच्चों को स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पा रहा है। बच्चों को अलग-अलग प्रकार के ब्यंजनों की लिस्ट के माध्यम से बच्चों में वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और कैलोरी की मात्रा को संतुलित रखना था। लेकिन इस कार्य में अब तक 
सफलता नहीं मिल सकी है।


स्व सहायता समूह मनमर्जी से बनाते हैं मध्यान्ह भोजन


 ग्रामीण क्षेत्रों की शालाओं में स्व सहायता समूह अपनी मनमर्जी से मध्यान्ह भोजन का मीनू तय करते हैं मीनू के हिसाब से कई शालाओं में भोजन बनाया ही नहीं जाता। जिस दिन शाला में हरी सब्जी और दाल रोटी बनाने का चार्ट में उल्लेख होता है उस दिन केवल दाल रोटी बन जाती है और हरी सब्जी के नाम पर दाल में केवल हरी पालक, मेथी की भाजी या पत्तागोभी डालकर सब्जी की पूर्ति की जाती है। गुरुवार को पकोड़े डालकर कड़ी एवं पुलाव बनाया जाना निर्धारित है तो कई शालाओं  में केवल पुलाव ही बनाया जाता है और दही नहीं होने के कारण कड़ी नहीं बनाये जाने का बहाना किया जाता है।
 उनके अनुसार यही मीनू है ।प्रधान पाठकों को इस बारे में जब पूछा जाता है वह स्व सहायता समूह की शिकायत करते नजर आते हैं।


संबंधित अधिकारी द्वारा नियमित मॉनिटरिंग नहीं हो पाती
 
जिले में संचालित स्व सहायता समूह द्वारा मध्यान्ह भोजन के संबंध में जिला पंचायत द्वारा प्रभारी अधिकारियों द्वारा मध्यान भोजन के संबंध में नियमित मॉनिटरिंग नहीं की जाती जिसके अभाव में स्व सहायता समूह अपनी मनमर्जी से मध्यान भोजन का संचालन करते हैं कहीं ग्रामीण क्षेत्रों में तो किसी के गांव में किसी की मृत्यु पर बच्चों को भी भूखा रखा जाता है क्योंकि मध्याह्न भोजन बनाने वाली महिलाएं वहां जाती है जिसके कारण मध्यान्ह भोजन नहीं  बना पाती है। कई बार धार्मिक अवसर पर शिक्षकों के उपवास होने के कारण वहां पर बच्चों के लिए भी फरियाली के रूप में साबूदाने की खिचड़ी का वितरण किया जाता है।


स्थानीय  नेताओं के स्व सहायता  समूह करते है नेतागिरी


जिले की कई ग्रामीण शालाओं में मध्यान्ह भोजन बनाने वाली महिलाओं के परिवार वाले अक्सर किसी न किसी  राजनीतिक नेताओं से जुड़े होने के कारण हमेशा स्कूलों में शिक्षकों पर दबाव बनाते हैं और अपनी मनमर्जी से मध्यान्ह भोजन का संचालन करते हैं जिसकी शिकायत कई बार शिक्षक उच्च अधिकारियों को नहीं कर पाते जिसका फायदा अक्सर यह समूह वाले उठाते हैं।


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