ईगल, पिकॉक, डव और आउल चाइल्ड साइकोलॉजी के चार पैटर्न है, बच्चों का स्वभाव इन्हीं पर आधारित-डॉ.योगिनी
अर्वाचीन इंडिया स्कूल के 'एड्यू स्पोर्टस् एप' का शुभारंभ, अभिभावकों की हुई विषेष कार्यषाला
बुरहानपुर। ईगल, पिकॉक, डव और आउल चाइल्ड साइकोलॉजी के चार पैटर्न है, बच्चों का स्वभाव इन्हीं पर आधारित होता है।
यह बात शहर के अर्वाचीन इंडिया स्कूल में आयोजित कार्यषाला में औरंगाबाद से आई डॉ.योगिनी ने चाइल्ड सायकोलॉजी विषय पर संबोधित करते हुए अभिभावकों को बच्चों का बर्ताव और स्वभाव समझने के लिए कुछ पैटर्न्स बताए। उन्होंने कहा बच्चों के सायकोलॉजिकल पैटर्न को समझ ही उनका सही डेवलपमेंट किया जा सकता है। ये पैटर्न है, ईगल, पिकॉक, डव और आउल।
यह बात शहर के अर्वाचीन इंडिया स्कूल में आयोजित कार्यषाला में औरंगाबाद से आई डॉ.योगिनी ने चाइल्ड सायकोलॉजी विषय पर संबोधित करते हुए अभिभावकों को बच्चों का बर्ताव और स्वभाव समझने के लिए कुछ पैटर्न्स बताए। उन्होंने कहा बच्चों के सायकोलॉजिकल पैटर्न को समझ ही उनका सही डेवलपमेंट किया जा सकता है। ये पैटर्न है, ईगल, पिकॉक, डव और आउल।
शनिवार को अर्वाचीन इंडिया स्कूल में 'एड्यू स्पोर्टस् एप' का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर अभिभावकों की विषेष कार्यषाला भी आयोजित की गई। कार्यषाला दो सत्र में संपन्न हुई। अभिभावकों ने एड्यू स्पोटर््स एप की सराहना करते हुए स्कूल प्रबंधन का आभार व्यक्त किया।
संस्था के जनसंपर्क अधिकारी मिर्जा राहत बेग ने बताया कि आयोजित कार्यषाला के प्रथम सत्र में एड्यू स्पोर्टस् एप का शुभारंभ किया गया। जिसके दौरान पालक अपने पाल्य द्वारा एड्यू स्पोर्टस् में किए गए क्रियाकलापों को देख पाएंगे। इस एॅप को पाकर अभिभावक काफी प्रसन्न दिखाई दिए। दूसरे सत्र में डॉ.योगिनी कुबेर द्वारा अभिभावकांे को समझाया गया कि माता-पिता बच्चों की मानसिकता को समझकर कैसे वो एक सफल माता-पिता बन सकते है। जब माता-पिता बच्चों की मानसिकता को समझते हैं, तभी वो बच्चों को एक सही और अच्छा वातावरण दे सकते हैं। बच्चों को समझाने के लिए लविंग एंड केयरिंग ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। ऐसा करने पर वो अच्छे से प्रतिक्रिया देते हैं, इससे माता-पिता बिना किसी तनाव को महसूस किए सफलता प्राप्त कर सकते है।
डॉ.योगिनी ने ईगल के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि डॉमिनेटिंग, प्रैक्टिकल। इन्हें इमोषनली ट्रीट नहीं किया सकता। ऐसे बच्चों को कन्विंस करने के लिए लॉजिक चाहिए। ये सवाल बहुत पूछेंगे। ये अपने टारगेट को पूरा करना जानते है। इसलिए फोकस्ड रहते है। अच्छे लीडर्स। पिकॉक बातूनी लेकिन सिर्त। कम्फर्ट जोन में ही घुलना-मिलना पसंद करते है। इन्हें समझाने के लिए लविंग और केअरिंग ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। ऐसा करने पर यह अच्छे से रिस्पॉन्स करेंगे। डव-ये हर जगह रिलेषन बनाने में यकीन रखते है। इनकी नजर में प्यार और संबंधों की अहमियत अधिक होती है। लीडर नहीं टीम प्लेयर अच्छे होते है। अपनों के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है। वहीं आउल-एनालिटिकल। क्वांटिटी से अधिक क्वालिटी टाइम पर फोकस।
डॉ.योगिनी ने बच्चा ओवर कॉन्फिडेंट है तो उसे दबाने की गलती न करें। प्रॉपर टैकल करे। वरना एक समय बाद वो ब्लॉस्ट हो जाएगा। एनर्जी चैनलाइज करे। बच्चे को अगर गुस्सा बहुत आता है तो उसे क्लाब मॉनिटर बनाए या कोई जिम्मेदारी सौंप दे। पेरेटिंग में हम के बजाय मैं शब्द शामिल करें। इस एक शब्द में जिम्मेदारी का भाव अधिक होता है। सजा नहीं समझाईष दीजिए। हायपर एक्टिव बच्चों से पेरेंट्स ज्यादा परेषान रहते है। अक्सर वे बच्चों की एक्टिविटी बंद कर देते है। ये समाधान नहीं है। कई बार ऑफिस, बिजनेष और घर के कामकाज का गुस्सा बच्चों पर निकाल दिया जाता है। बच्चें को पता भी नहीं होता कि पिटाई क्यों हो गई। फिजिकल पनिषमेंट न दे, और ना ही उन पर चिल्लाएं। बच्चे के सामने कभी बहस न करें। बेहतरीन पेरेंट्स होने के लिए हसबैंड-वाइफ के बीच अच्छा संबंध होना जरूरी है। कार्यषाला में डॉ.योगिनी के साथ उनके टीम मेम्बर अनुरोध चौहान और रूपाली श्रॉफ भी उपस्थित रही। कार्यषाला के अंत में संस्था अध्यक्ष श्रीमती राखी मिश्रा ने अभिभावकों को संबोधित कर अपने विचार रखें तथा आभार व्यक्त किया।
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